विश्वविद्यालयों
में सांप्रदायिकता का ज़हर
-राम पुनियानी
विश्वविद्यालय वे
स्थान होते हैं जहां आने वाली पीढ़ी के विचारों को आकार दिया जाता है।
विश्वविद्यालयों में स्वस्थ व स्वतंत्र बहस और विभिन्न विचारों, जातियों और धर्मों के विद्यार्थियों के परस्पर मेलजोल से मानवीय और समावेशी
मूल्यों का निर्माण होता है। युवा अक्सर आदर्शवादी हुआ करते हैं और विश्वविद्यालय
का वातावरण, उनके आदर्शवाद को जिंदा रखने में सहायक
होना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से देश में विश्वविद्यालयों के वातावरण को संकीर्ण
और विषाक्त करने की कोशिशें हो रही हैं। एक ओर स्वस्थ और स्वतंत्र बहस को रोका जा
रहा है तो दूसरी ओर किसी न किसी बहाने उदारवादी-प्रजातांत्रिक विचारों और उनके
पोषकों पर हमले हो रहे हैं। दिल्ली के रामजस कॉलेज में 22 फरवरी, 2017 के बाद से जो हुआ, वह दक्षिणपंथी
राजनीतिक ताकतों की योजनाओं और इरादों की ओर संकेत करता है।
कॉलेज में एक
सेमीनार का आयोजन किया गया था। इसके वक्ताओं में उमर खालिद और शहला रशीद शामिल थे।
यह आरोप लगाया गया कि ये दोनों राष्ट्र-विरोधी हैं, सेमीनार के आयोजन
में बाधा डाली गई और जिन विद्यार्थियों व अध्यापकों ने उसका आयोजन किया था, उन पर यह आरोप लगाकर हमले किए गए कि वे राष्ट्र-विरोधी विचारों को
प्रोत्साहन दे रहे हैं। हमलावर आरएसएस की विद्यार्थी शाखा एबीवीपी के सदस्य थे।
हमले के अगले दिन, उन्होंने अध्यापकों
और विद्यार्थियों को लगभग बंधक बना लिया और उन्हें एफआईआर करने के लिए थाने तक
नहीं जाने दिया गया। दो अध्यापकों की खुलेआम पिटाई लगाई गई। इसके बाद एक तिरंगा
यात्रा निकाली गई। इसके अगले दिन एक विशाल ‘डीयू बचाओ’ यात्रा निकली, जिसमें हज़ारों
विद्यार्थियों और अध्यापकों ने भाग लिया। इससे यह पता चलता है कि एबीवीपी की इन
हरकतों के खिलाफ किस तरह का आक्रोश है। दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में
हुई यह घटना एबीवीपी द्वारा विभिन्न उच्च शैक्षणिक संस्थानों के परिसरों में किए
जा रहे उत्पातों की श्रृंखला में सबसे ताज़ा है। हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय
में इस बहाने हिंसा की गई कि वहां जातिवादी और राष्ट्रविरोधी गतिविधियां की जा रही
हैं। किन गतिविधियों को राष्ट्र-विरोधी बताया गया? विश्वविद्यालय में
अंबेडकर स्टूडेन्ट्स एसोसिएशन ने मुज़फ्फरनगर दंगों पर आधारित फिल्म ‘मुज़फ्फरनगर बाकी है’ के प्रदर्शन का
आयोजन किया था। इसी संगठन ने याकूब मेमन के संदर्भ में यह मांग की थी कि मौत की
सज़ा समाप्त की जाए और ‘पवित्र गाय’ ब्रिगेडों के शिकार बन रहे लोगों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए ‘बीफ फेस्टिवल’ का आयोजन किया गया
था। हम सब जानते हैं कि उसके बाद किस तरह रोहित वेम्युला की संस्थागत हत्या हुई।
इसकी पूरे देश में कड़ी प्रतिक्रिया हुई और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता व दलित
मुद्दों को लेकर बहस छिड़ गई।
राष्ट्र-विरोध का
मुद्दा कैसे खड़ा किया जाता है, यह जेएनयू और
दिल्ली विश्वविद्यालय में हुईं घटनाओं को एक साथ देखकर लगाया जा सकता है। जेएनयू
में कुछ नकाबपोशों ने कुछ आपत्तिजनक नारे लगाए। इसके बाद कन्हैया कुमार, उमर खालिद और उनके कुछ साथियों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया
गया। दिलचस्प यह है कि जिस सीडी को बार-बार एक टीवी चैनल में दिखाया गया और जिसने
भावनाओं को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, वह सीडी बाद में
नकली पाई गई। जहां कन्हैया कुमार और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया वहीं
नकाबपोशों को ढूंढने का कोई प्रयास नहीं हुआ। बाद में एक अदालत ने कन्हैया कुमार
और उनके साथियों को ज़मानत पर रिहा कर दिया। हाल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद
केजरीवाल ने यह आरोप लगाया कि भाजपा और एबीवीपी के कार्यकर्ता स्वयं ही आपत्तिजनक
नारे लगाकर भाग जाते हैं और फिर उन नारों के बहाने हमले किए जाते हैं। भाजपा के
प्रवक्ताओं ने बार-बार यह कहा कि जेएनयू में विद्यार्थी भारत की बर्बादी के नारे
लगा रहे थे। इस घटना को लगभग एक साल हो गया है परंतु आज तक यह साफ नहीं है कि वहां
पर असल में हुआ क्या था।
रामजस कॉलेज का
मुद्दा भी उमर खालिद से जुड़ा हुआ है। उमर खालिद के कश्मीर के मुद्दे पर अपने विचार
हैं जो उन लोगों से मेल नहीं खाते, जिन्होंने उन पर
हमला किया। प्रश्न यह है कि क्या हमें अपने विचार प्रस्तुत करने की आज़ादी भी नहीं
है? कश्मीर के मामले में भाजपा की यह
असहिष्णुता इसलिए भी चकित कर देने वाली है क्योंकि भाजपा ने कश्मीर में पीडीपी के
साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई है। पीडीपी का अलगाववादियों के प्रति नरम रवैया रहा
है। यह साफ है कि आरएसएस एक ओर विश्वविद्यालय परिसरों में सांप्रदायिक सोच को हवा
देना चाहता है तो दूसरी ओर वह अपने से भिन्न राय रखने वालों को आतंकित करना भी
चाहता है।
मोदी सरकार के
सत्ता में आने के बाद से एबीवीपी की हिम्मत बहुत बढ़ गई है। वह इसलिए खुलेआम हिंसा
कर रही है क्योंकि उसे पता है कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। एक के बाद एक
विश्वविद्यालयों को निशाना बनाया जा रहा है। जोधपुर के जयनारायण व्यास
विश्वविद्यालय का मामला भी ताज़ा है। वहां के प्रोफेसर राणावत ने जेएनयू की
प्रोफेसर निवेदिता मेनन को एक गोष्ठी को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया था। इस
गोष्ठी के बाद वक्ता के विरूद्ध प्रकरण दर्ज कर लिया गया और प्रोफेसर राणावत को निलंबित
कर दिया गया। यह सब बहुत दुखद और चिंतित
करने वाला घटनाक्रम है। भविष्य में हम क्या आशा कर सकते हैं?
रोहित वेम्युला की मृत्यु के बाद देश भर में
विद्यार्थी आंदोलनरत हो गए थे और दलितों से जुड़े मुद्दे चर्चा में आ गए थे। रामजस
कॉलेज में भी जहां एबीवीपी की तिरंगा यात्रा में बहुत कम विद्यार्थियों ने भाग
लिया वहीं डीयू बचाओ यात्रा को जबरदस्त समर्थन मिला। रामजस कॉलेज की विद्यार्थी
गुरमेहर कौर को ‘ट्राल’ किया गया। उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट पर लिखा कि वे एबीवीपी से नहीं डरतीं और शांति
की पैरोकार हैं। इसके बाद भाजपा नेताओें ने उस पर हमला बोल दिया। इससे
विद्यार्थियों में नाराज़गी और बढ़ी और अब विश्वविद्यालय प्रांगणों में खुली बहस के
पक्ष में विद्यार्थियों में जनमत बन रहा है। जहां एबीवीपी हिंसा के ज़रिए मतभेदों
को सुलझाना चाहती है वहीं अधिकांश विद्यार्थी विचार-विनिमय और बहस के पक्ष में
हैं। राष्ट्र-विरोध और राष्ट्रद्रोह के नाम पर विद्यार्थियों को डराने-धमकाने का
सिलसिला लंबे समय तक नहीं चल सकेगा। खुली और स्वतंत्र बहस के पक्ष में राय को बहुत
दिनों तक दबाना संभव नहीं होगा। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी
रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)