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March 06, 2013

India: BJP MP Varun Gandhi let of in another Hate Speech Case (news report) | Statement in Hindi and Urdu by Rihai Manch

Hindustan Times

Varun Gandhi acquitted in another hate speech case
PTI
Pilibhit, March 05, 2013
In yet another reprieve, BJP MP Varun Gandhi was today acquitted by a local court in a hate speech case filed against him during the 2009 Lok Sabha polls. The order was passed by Chief Judicial Magistrate Abdul Quayyum here. Two hate speech cases were filed against Varun in
connection with 2009 elections. While he was acquitted by the same court on February 27 in the case lodged in Kotwali police station, today's order related to the case filed in Barkhera police station. A case of violence outside the district jail against him had been referred to the sessions court, according to the prosecution.
In a statement, 33-year-old Varun expressed his faith in the judiciary and welcomed the decision of the court.
"This has been a long and hard fought battle for justice. I welcome the court's decision in vindicating me. I am deeply grateful to those who stood by and believed in me through this difficult time.
"I shall continue working for a strong and united India," he said.

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RIHAI MANCH
(Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism)
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वरुण गांधी मामले में गवाह नहीं सपा सरकार हुई होस्टाईल- रिहाई मंच
सरकारी वकील वरुण के पक्ष में लड़ रहे थे मुकदमा- रिहाई मंच
सपा सरकार में शर्म बची हो तो जाए हाई कोर्ट- रिहाई मंच

लखनऊ 6 मार्च 2013/ रिहाई मंच ने पीलीभीत के बरखेड़ा और डालचंद गांव में
भड़काऊ भाषण के आरोप से वरुण गांधी के बरी हो जाने को उनके निर्दोष होने
के बजाय सपा सरकार की मुस्लिम विरोधी राजनीत का परिणाम बताया। संगठन ने
जारी बयान में कहा कि जब पिछले साल सरकार ने वरुण गांधी पर से मुकदमा
हटाने की बात की थी तभी यह तय हो गया था कि मुसलमानों के हाथ काटने की
धमकी देने वाले इस सांप्रदायिक नेता को सरकार छोड़कर मुस्लिम समाज में भय
का माहौल पैदा करके 2014 के चुनावों की फसल काटना चाहती है।

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि वरुण गांधी
के खिलाफ कानूनी लडाई लड़ने की सपा सरकार की इच्छा शक्ति किस कदर कमजोर
है इसकी पुष्टि इससे हो जाती है कि सरकार के इस बयान के बाद ही इस मामले
के गवाह थोक में पलटने लगे। मसलन 24 और 29 नवंबर को कुल 18 गवाह अपने
पुराने बयान से एक साथ मुकर गए, जो एक असामान्य परिघटना है। नेताओं ने
सरकारी वकील के रवैए पर कहा कि सरकारी वकील को जब एटा जेल में वरुण गांधी
ने अपनी आवाज का नमूना देने से इन्कार कर दिया तब भी सरकारी वकील ने
कोर्ट में उनकी आवाज का नमूना लेने की प्रार्थना नहीं की। जबकि फारेंसिक
रिपोर्ट के लिए वरुण की आवाज का नमूना लिया जाना जरुरी था। इसीलिए
फारेंसिक रिपोर्ट में यह बात साफ-साफ कही गई है कि बिना आवाज का नमूना
लिए हुए हम यह पुष्ट नहीं कर सकते कि आवाज वरुण गांधी की है या नहीं।
नेताओं ने कहा कि सरकारी वकील ने फारेंसिक रिपोर्ट में वरुण की आवाज लिए
जाने की मांग के बावजूद उनका आवाज नहीं लिया गया। इससे साबित होता है कि
सरकार की मंशा वरुण गांधी को सजा दिलाने के बजाए उनके लिए बरी होने का
रास्ता तैयार करना था। नेताओं ने कहा कि वरुण गांधी ने अपने बचाव में कहा
था कि यह आवाज उनकी नहीं है और उनकी आवाज के साथ छेड़-छाड़ की गई है। ऐसे
में कानूनी तौर पर यह जिम्मेदारी वरुण गांधी की ही थी कि वे अपने दावे को
प्रमाणित करें कि यह आवाज उनकी नहीं है। लेकिन न्यायाधीश ने इस कानूनी
प्रक्रिया को अपनाने के बजाए सरकार के दबाव में वरुण गांधी के झूठे दावे
पर गैरकानूनी तरीके से मुहर लगा दी। जिससे साबित होता न्यायालय ने वरुण
गांधी के बचाव पक्ष में खुद एक पार्टी बनते हुए सपा सरकार के इशारे पर
सांप्रदायिक और समाज के लिए खतरनाक इस व्यक्ति को बरी कर दिया।

रिहाई मंच ने कहा कि इस मुकदमें में न्यायपालिका किस तरह सरकार के इशारे
पर वरुण गांधी को छोड़ने के लिए आमादा थी इसकी पुष्टि इससे भी हो जाती है
कि आवामी काउंसिल के महासचिव व रिहाई मंच के नेता अधिवक्ता असद हयात ने
जब 25 फरवरी को पीलीभीत के सीजीएम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया
था कि वरुण गांधी के भाषण से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं लिहाजा
उनके भाषण प्रसारित करने वाले एनडीटीवी, सीएनएन आईबीएन चैनलों को गवाह के
बतौर बुलाया जाए और वरुण गांधी की आवाज का नमूना लिया जाए और वो आवाज
नहीं देते हैं तो इसे उनके खिलाफ विपरीत अभिमत (एडवर्स इन्फरेंस) माना
जाए कि यह आवाज उन्हीं की है। लेकिन सरकारी वकील के विरोध के चलते कोर्ट
ने उनकी इस मांग को नहीं माना और 27 फरवरी को प्रार्थना पत्र खारिज कर
दिया। जिसके खिलाफ उन्होंने हाई कोर्ट में रिवीजन एप्लीकेशन लगाई और फिर
उन्होंने सीजेएम कोर्ट में दूसरी प्रार्थना पत्र लगाई कि 27 फरवरी के
सीजेएम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में उनकी अर्जी पर सुनवाई होने
तक फैसला न सुनाया जाए। लेकिन सरकारी वकील के विरोध के चलते 4 मार्च को
उनका यह प्रार्थना पत्र भी सीजेएम कोर्ट ने खारिज कर दिया और 5 मार्च को
वरुण गांधी को बरी कर दिया। जिससे साबित होता है कि इस मामले में गवाह
नहीं बल्कि अपने को धर्म निरपेक्ष कहने वाली और मुसलमानों के वोट से ही
पूर्ण बहुमत में पहुंचने वाली सपा सरकार होस्टाइल हुई है।

रिहाई मंच ने कहा कि इस अदालत के पास काॅमन सेंस नहीं था या फिर उसने
सरकार के दबाव में अपने विवके का इस्तेमाल करना उचित नहीं समझा और इस
भड़काऊ भाषण की असलियत को जानने के लिए चैनलों को नहीं तलब किया। यह
सामान्य सा तर्क था कि चुनावों के दौरान वरुण के भाषण को चैनलों द्वारा
प्रसारित किया गया और वरुण का कहना था कि यह उनकी आवाज नहीं है और उनकी
आवाज के साथ छेड़खानी की गई है। ऐसे में अगर वरुण को बरी कर दिया गया तो
इसका यह अर्थ है कि इन चैनलों ने छेडखानी की तो न्यायालय बताए कि क्या यह
जुर्म नहीं है। और इन चैनलों को तलब करने के लिए उसके पास स्वविवेक नहीं
है।

द्वारा जारी
राजीव यादव, शाहनवाज आलम
09452800752, 09415254919
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Office - 110/60, Harinath Banerjee Street, Naya Gaaon East, Laatoosh
Road, Lucknow
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        Email- rihaimanchindia@gmail.com